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पत्थर के इंसान




राज ताम्रकर की खुशियो का कोई ठिकाना नही रहा और रानी तृषा के लिए तो जैसे सारा संसार ही मिल गया हो सबसे पहले नवजात का नामाकरण सांस्कार का उत्सव मनाया गया ।

आचार्य कात्यायन नामाकरण सांस्कार से जीवन जन्म जीवन के दूसरे सांस्कार पुंशवन के बाद नामाकरण के लिए पधारे होनहार राजकुल का स्वस्थ खूबसूरत उत्तराधिकारी नूर नजर के नामकरण सांस्कार का भव्य आयोजन इस बात की गवाही देने के लिए पर्याप्त था कि आवनी अम्बर प्रकृति ने धारा पर किसी आश्चर्य को जन्म दे दिया है। 

मनोरम बातावरण मधुमास स्वच्छ सुगन्ध पवन किसानों के यहां धन धान्य के आगमन की खुशहाली और जन जन के मन मे उत्साह उल्लास नामाकरण सांस्कार का कार्यक्रम पण्डित जी ने कहा नवजात का नाम होगा अनिरूद्ध।

चारो तरफ आवनी आकाश में करतल ध्वनि के साथ एक ही स्वर गूंज उठा महाराज ताम्रकर की जय महारानी तृषा की जय जय राज कुमार अनिरूद्ध की जय जय जय खुशियो का वातावरण प्रकृति भी नवागत के उछाह में मनोरम अनिरुद्ध का आना जैसे किसी प्रतीक्षारत मन्नत मनौती की खुशियों को आना वास्तव में अनिरुद्ध का जन्म राज परिवार के लिए अविस्मरणीय अप्रत्याशित प्रिय शुभ मुहूर्त का महत्वपूर्ण आगमन अभीनंदन था।

अनिरुद्ध का पाटीपुजन सांस्कार, यग्योपवित सांस्कार ,पूर्ण हुआ और महाराज ताम्रकार की आयु पचहत्तर पार कर चुकी थी और उनको अपने व्यवसायिक रियासत के लिए शीघ्रता शीघ्र योग्य वारिस अनिरुद्ध की आवश्यकता थी ।

अतः राजा ताम्रकर ने  अनिरुद्ध को शिक्षा के लिए अमेरिका भेज दिया अनिरुद्ध बहुत मेहनत से पढ़ने में पूरे एकाग्रता जोर शोर से जुटा था वह किसी तरह का कोर कसर अपने अध्यपन मे नही छोड़ना चाहता था उंसे उसके अमेरिकन सहपाठी सेकेंड विवेकानंद ऑफ  इंडिया शर्ट फार्म में स्वायय ही बुलाते ।

राजा ताम्रकार को भी अपने एकलौते बेटे एव सत्येश गढ़ राजगराने के वारिस की विदेशी प्रशंसा से आल्लादित रहते अनिरुद्ध को उम्र बीस वर्ष हो चुकी थी वह स्नातक के अध्ययन हेतु अक्सफ़ोर्ट में प्रेवेश लिया और अपने अध्ययन का विषय चुना पर्यावरण औए व्यवसायिक प्रवंधन दोनों विषयो में कोई समानता नही फिर भी अनिरुद्ध की अपने पसंद की बात थी ।

वह भारत तीन महीने की छुट्टियों में सात वर्ष के बाद आ रहा था राज ताम्रकर की आयु अस्सी पार कर रही थी उनकी इच्छा थी कि अनिरुद्ध को सारे मापदंडों को दर किनार कर जल्दी से जल्दी सारी डिग्रियां प्रदान कर दी जाए और जितनी जल्दी सम्भव हो सके उंसे शक्तयेश गढ़ की जिम्मेदारी सौंप दी जाय ।

लेकिन उनकी कल्पनाओं का कोई हल नही था अनिरुद्ध के इतने दिनों भारत लौटने पर उत्सव मनाया गया प्रीतिभोज नृत्य गायन आदि का आयोजन हुआ कुछ दिन बाद अनिरुद्ध ने घूमने के लिए नेपाल जाने की जिद्द कर डाली वह भी खुली जीप से कहते है बुजर्ग एव बालक दोनों ही थोड़ी सी छोटी सी बात पर डर जाते है एक तो अनिरुद्ध एकलौता बेटा दूसरा उनकी बूढ़ी उम्मीदों की छूटती सांसे कब साथ छोड़ दे अतः वह सत्येक्स गढ़ के वारिस अपने प्रिय बेटे कलेजे के टुकड़े को किसी भी परिस्थितियों का कारण जोखिम में नही पड़ने देना चाहते थे ।

उन्होंने अनिरुद्ध की जिद्द को मानते हुए उसके साथ पूरा लाव लश्कर ही भेज दिया अनिरूद्ध को भी कोई बहुत फर्क पड़ने वाला नही था उंसे कम्पनी मिल गई नेपाल में जनकपुर के रास्ते भ्रमण के लिए योजना के अनुसार निकला  वह अपने लव लश्कर के साथ जनकपुर से विराट नगर को तरफ बढ़ा जंगलो के बीच ज्यो ही पहुंचा उसकी जीप ने बहुत हल्का संतुलन खोया जिसे नियंत्रण करते करते सड़क के किनारे खड़ी एक लड़की से बहुत हल्के से टकरा गई अनिरूद्ध ने जीप रोक दी साथ ही साथ उसके साथियों ने भी जीप रोक दी ज्यो ही अनिरुद्ध उस अनजान लड़की के पास पहुंचा वह लड़की उठी और बोली तुम्हे सड़क दिखती नही है क्या? सड़क के किनारे चले आये जान्हवी से टकरा जहन्नुम में जाने के लिए ।

बाई द वे आपको मालूम नही की नेपाल में कितने शक्त कानून है अभी मैं पुलिस को बुलाती हूँ और तुम्हे उसके हवाले करती हूँ काठी ठुकेगी औकात ठिकाने आ जायेगी तब पता चलेगा रईस खानदान कि बिगड़ी औलाद का क्या अंजाम होता है अनिरुद्ध ने सारी बोलता रहा लेकिन जान्हवी को कोई फर्क नही पड़ रहा था तभी उसकी माँ जंगिया वहां आयी और बोली जानू किससे सुबह सुबह भीड़ गयी है जान्हवी बोली कुछ नही मॉ पता नही किस रईस की बिगड़ी औलाद है इसे सड़क पर गाड़ी चलाने ही नही आती आज यह नेपाल में गाड़ी चलाना सिख जाएगा जंगिया ने अनिरुद्ध को बड़े ध्यान से देखा पता नही क्यो उसके मन मे अनिरुद्ध को देखकर मातृत्व की भावनाएं उफान मारने लगी। 

जंगिया ने पूछा कहा से हो बेटा अनिरुद्ध बोल उठा मैं सक्तेश गढ़ का राजकुमार अनिरुद्ध  हूँ जंगिया के पैर खुशी से अपने आप थिरकने लगे वह बोली जान्हवी  हमारे आदिवासी कबीले के कुलदेवी देवता का प्रताप है कि तुम्हारी मुलाकात अनिरुद्ध से हुई यह उन्ही की संतान महारानी तृषा की कोख से जन्मा है जान्हवी बोली व्हाट ? ये कबीला कुल देवता क्या होता है जंगिया ने जान्हवी से बताना शुरू किया उसने बताया कि वह वन प्रदेशो में छोटे छोटे कबीले जो वन के गांव जैसे ही होते है जैसे हर गांवो में ग्राम्य देवी देवताओं का वास होता है और गांव वालों की उनमें अपार श्रद्धा होती है उसी तरह प्रत्येक कबीला एक गांव की तरह होता है और हर कबीले के कुलदेवता देवी अलग अलग होते है ।

अनिरुद्ध हमारे भेंगा कुलदेवता के आशीर्वाद है मैंने ही महारानी तृषा को अपने कुलदेवता देवी का प्रसाद दिया था ।

जान्हवी ने कहा मीन्स ही इस लाईक माय ब्रदर जंगिया ने कहा बेटी कहा से जब देखो अंग्रेजी बोलती रहती है चार आखर किताब क्या पढ़ लिया बहुत ज्ञानी बन गयी दाई आखर प्यार के पढ़ देख यही तेरे जीवन का सूरज चाँद भाग्य भगवान करम किस्मत देवता है ।

तू गुस्सा छोड़ और अपने कुलदेवी देवताओं का आभार कर की तुझे तेरे प्यार जिंदगी से मिलने का मौका दे दिया जान्हवी कुछ शांत होकर बोली मामा तुम कह रही हो तो ठीक है ।

अनिरुद्ध की तरफ मुखातिब होकर बोली बाई द बे ममी के अनुसार आप मेरे प्यार जिंदगी भविष्य है तो मुझे जानने का हक है कि जनाब करते क्या है और हां अपने परिचय में ये मत बताये की आपके बाप दादे बहुत बड़े रियसत के राजा थे और बहुत बड़े बड़े तीर मारे है जब देखो इसी प्रकार का परिचय देते है रजवाड़े परिवार के आधुनिक नौजवान उनको यह इल्म नही होता कि जिस बाप दादो की तारीफ में पुले बांध रहे है वह बेमतलब है क्योंकि उनके बाप दादे इतने बड़े तीसमार खा होते तो अंग्रेजो एव मुगल जाने कब का उनके बाप दादो के साम्राज्य का नमो निशान मिटा चुका होता और उनके बाप दादे सम्माननित शहीदों में राष्ट्रभक्त के रूप में शुमार होते ना कि रियासत बचाने वाले अंग्रेजो मुगलों के चमचागिरी के पुरस्कार की रियसत एव उसके वंशज में ये जनाब अनिरूद्ध भी यही है जान्हवी बोली हा तो बोलिये मिस्टर प्रिंस ऑफ सक्तयेश गढ़ बताये अनिरुद्ध बोला मैं अनिरुद्ध आकफोर्ट में पढ़ता हूँ ग्रेजुएशन लेवल में और फ्यूचर में क्या करना है बाप दादाओं की चमचागिरी की रियसत का उत्तराधिकारी बनाना है या अपनी पहचान खुद प्रस्तवित प्रामाणित करनी है अनिरुद्ध ने पूछा बाई द बे मैडम जान्हवी आप क्या करती है जान्ह्वी बोली अाई एम स्टूडेंट्स ऑफ त्रिभुअन यूनिवर्सिटी इन मेडिकल फैकेल्टी इन फर्स्ट ईयर फिर बोली माँम ने बताया ही की हम लोग खानाबदोश भेंगा आदिवासी समाज से आते है शारीरिक करतब दिखाकर इधर उधर घूमते है मेरा जन्म भी ऐसे ही हैं मेरी माँ को नही मालूम कि जब मैंने जन्म लिया था तब वह कहा थी किस गांव किस जनपद में अपने पास कुछ भी नही पेट के सिवा करतब दिखाना  पेट पालना यही मेरे परिवार का काम था पता नही कैसे घूमते फिरते हम लोग नेपाल आ गए मैंने होश संभाला नेपाल में बड़ी यहां हुई यही खानाबदोश का जीवन त्याग कर जंगल किनारे गांव में रहते है और आब पूरे कुनबे का गांव है
और हा हमारे कुनबे के पास सिर्फ पेट एव उंसे भरने के लिए श्रम की संपत्ति ही होती है अंग्रेजो और मुगलों के काल मे भी जंगलो में रहकर भारत की आजादी कि लिए लड़ रहे थे आज भी नेपाल की खुशहाली के लिए जंगल की दल दल से कमल खिलाने की कोशिश करते है।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।



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3 Comments

Radhika

02-Mar-2023 09:20 PM

Nice

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shahil khan

01-Mar-2023 06:47 PM

👍👍

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Gunjan Kamal

17-Dec-2022 08:55 PM

शानदार भाग

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